दलेस द्वारा राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन
डॉ. राजकुमारी ‘राजसी’ |
पूर्व अध्यक्ष, दलेस |
दलित लेखक संघ के तत्वावधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन दिनांक 4 अगस्त को 3 बजे से शाम 7 बजे ऑनलाइन पटल पर किया गया। जिसमें भारत के विभिन्न राज्यों से सम्मानित वरिष्ठ, कनिष्क कवि और कवयित्रियों ने बड़चढ़कर भागीदारी दर्ज की। कार्यक्रम का संचालन बलविंदर सिंह बलि ने काव्य गोष्ठी के महत्व और उद्देश्य को रखते हुए किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दलेस अध्यक्ष हीरालाल राजस्थानी ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में शामिल हुए सभी कवियों को बधाई देते हुए कहा कि यह काव्य गोष्ठी इसलिए महत्वपूर्ण रही इसमें जाति धर्म के बंधन से दूर कवियों ने समाज की सड़ी गली व्यवस्था पर कुठाराघात कर उल्लेखनीय कविताओं का पाठ किया।
जिन अधिकारों का ज़िक्र भारतीय संविधान में स्त्री पुरुष को समान रूप से उल्लेख किया गया है। दोनों को मिले अधिकार घर की देहरी में पुरुष प्रधान व्यवस्था में स्त्रियों के अधिकार हमेशा ख़तरे में ही रहे। उन्हें इसके लिए आज भी संघर्ष करना पड़ रहा है। यही कारण है कि आज इस कविता गोष्ठी का मुख्य स्वर स्त्री विमर्श पर ही केंद्रित रहा। यह समय और संविधान दोनों की ख़ातिर आवश्यक है कि हम संविधान में दिए गए अधिकारों की रक्षा करें। और कवि और कविता दोनों का यह दायित्व है कि वह इस लड़ाई को शब्दों की ढाल पर तब तक लड़े जब तक बदलाव की बयार न बहे। इस कार्यक्रम में 20 से भी अधिक कवि और कवयित्रियां सम्मिलित हुए। प्रेम बजाज ने नारी जो अपने आत्मसम्मान के लिए आज भी संघर्षरत है और महावारी में किस तरह उसे हर स्थान पर जाने के लिए प्रतिबंधित किया जाता है जैसे स्त्री संघर्ष और व्यथा के मूल भाव की दो कविताओं का वाचन किया।
झारखंड से काव्य पाठ कर रही गुलांचो कुमारी की कविताएं आदिवासियों के इतिहास को मिटा इनके वीरो के अस्तित्व को मिटा देने की गहन अनुभूति की विचारात्मक कविता थी, गुमनामी की खाई में उन्हें धकेलने का दुख भी।ईमानदारी का मानवीकरण कर एक कविता पढ़ी गई जिसमें वर्तमान युग में ईमानदारी की खस्ता हालत और बेमानी के फलने फूलने के स्वरूप को उजागर किया गया। भावना ठाकर की कविताओं में स्त्री प्रेरणा और स्त्री की आत्मशक्ति के हौसलों के चुनाव की बात को मजबूती से रखा गया। उदासियों में चटक रंग चुनने का साहस स्त्री के लिए बहुत मुश्किल काम है उसी का साहस कविताओं में उन्होंने भरा। बेहद खूबसूरत उपमानों में श्रोताओं को मोह लिया। पूनम मल्होत्रा की छंदबद्ध कविताओं में स्त्री मन की धीरे धीरे खुलती परतों और सुंदरता के नए प्रतिमान गढ़ती कविताएं थीं।
खन्ना प्रसाद आमीन की कविता गरीब तबके को शिक्षा से दूर कर अपने लालचीपन, स्वार्थीपन के चलते मजदूर वर्ग तैयार कर हाशिए के समाज के भाव तथा सत्ता के यथार्थ रुप की कविता थी। वरिष्ठ कवि दामोदर मोरे की कविता की खुशबू रचना में कोई भी व्यक्ति अपने आप को किसी और के अनुसार ढाल नहीं सकता की अभिवयक्ति थी, रचना भीम कहूं या नीला पंछी एक विस्तृत भाव की अद्भुत कविता थी जिसमें बाबा साहब की मृत्यु के समय जगत के प्राणियों विरह व्यथा का व्यापक चित्र उकेरा गया सबसे मार्मिक रचना थी। कुसुम माधुरी की रचना आदिवासी विमर्श साथी आलोचक की प्रवृति के दोगलेपन की सच्चाई को
बयां करती झकझोरने वाली रचना थी । सरोज कुमारी ने भाई बहन के आत्मिक संबंध तथा झुग्गियों की तस्वीर खींच कर मार्मिक कविता का वाचन किया। अंजू सुंदर जिंदगी मेरी नज़र में रचना में जीवन की समस्याओं की अनसुलझी गांठें और कभी अत्याधिक बोझिल लगती ज़िंदगी के स्वरूप को उजागर कर रही थीं। चितरंजन लुकाटी ने अपनी रचना में अपनी भीड़ से भिन्न पहचान पर गर्व की बात ज़ोर देकर कही। स्नेहलता नेगी ने पहाड़ों की स्त्री के दुर्लभ जीवन और जटिल जीवन की चित्रावली प्रस्तुत की वहां की स्त्रियां पहाड़ को पीठ पर लाद चल रही हैं ये वास्तविक रुप श्रोताओं के समक्ष रखा। सपना चंद्रा ने मुसलसल चलने और निरंतर गतिशीलता की मुख्य बात की। हृदय अपने पुराने दायर में सुख शांति पाता है उनकी कविताओं का भाव रहा। ज्योति मिश्रा ने देहातियों द्वारा शहरियों की प्यास बुझाने की बात को मशीन से दो रुपए का एक गिलास पानी से जोड़ते हुए व्यापक और नए विषय को चुना। सौम्या तिवारी समाज में लड़के और लड़कियों के लिए गढ़े अलग अलग व्याकरण का खुलासा अपनी कविताओं में करती हैं। पद्म प्रतीक ने अपनी ग़ज़ल से पूरी महफ़िल का दिल जीत लिया। शीलू अनुरागी की कविता में प्रधानी के चुनाव और दारू से पलटे परिणामों का साकार रुप प्रस्तुत किया गया। बचा बुढ़ापा गांव में रोज़गार के चलते युवाओं के शहर की ओर पलायन की मज़बूत कविता थी। साधना ने योनि जो स्त्री शोषण का सबसे अधिक खतरनाक पैंतरा हैं पर बात रखी, लड़कियों को बोझ समझा जाता इस संदर्भ की कविता रखी। रानी कुमारी, उमा भारती की कविताएं भी स्त्री केंद्रित कविताएं रही।
दीपा ने स्त्री के चुनौतियों से भरे जीवन को रेखंकित किया। सुनील पंवार की कविता में सस्ती लोकप्रियता के चलते फूहड़ कविताओं के सृजन, द्विआर्थी शब्द प्रयोग, वर्तमान में कविता विधा की बिगड़ती स्थिति और मेरे प्रेम पर संदेह क्यों कविता में प्रत्यक्ष रुप से स्त्री को प्रेम उजागर नहीं कर पाती भाव पर विशेष ध्यान दिलाया गया।सुषमा पाथरी की कविताएं ओज की कविताएं थीं।
सुमन धर्मवीर, सुनीता वर्मा ने भी कविता पाठ किया।
सार संदर्भ में डॉ. राजकुमारी ने इस अद्भुत कवियों के जुटान पर अपनी बात रखते हुए रचनाओं के खट्टे, मीठे, कड़वे, चटपटे जायके की भांति कविताओं में मिले ऐसे रसास्वादन की बात कहते हुए अलग अंदाज़ में वाचन की गई कविताओं की प्रशंसा की। आधुनिकवाद के दौर की रचनाओं में स्त्रीवाद, तेवर, अंतरंग पहलुओं की कविताएं और बहिरंगी रचनाओं की भूरी भूरी प्रशंसा की। कुल मिलाकर सभी कविताओं में हृदय और बौद्धिकता,, भावना कल्पना, दृष्टांत बोध, अर्थबोध से सुसज्जित सभी रचनाओं को बताया। उन्होंने सौम्या तिवारी पर विशेष टिप्पणी करते हुए कहा कि उनके लेखन में अपार संभावनाएं है ।
कार्यक्रम के अंत में रिवायत को निभाते हुए भीम भारत भूषण ने कार्यक्रम में सभी कवियों की सराहना करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम मेंविशेष उपस्थिति- संतराम आर्य, बजरंग बिहारी तिवारी, अजय यतीश, सरिता संधू, सत्या सिद्धार्थ, जयराम पासवान और जगदीश पंकज की रही।
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बेहद शानदार आयोजन
बहुत बहुत बधाई। काव्य पाठ का आयोजन बहुत शानदार रहा। सभी कलमकारों को हार्दिक बधाई।
बेहद सुंदर आयोजन, विविध विषयों पर गंभीर अभिव्यक्ति एवम विश्लेषण।