पुस्तक समीक्षा: अंधेरे से उजाले की ओर: ‘द डार्केस्ट डेस्टिनी’ का सामाजिक विमर्श
— नृपेन्द्र अभिषेक नृप
वंचित वर्गों पर लागातार क़लम चलाने वाली हिंदी साहित्य के वरिष्ठ लेखिका डॉ. राजकुमारी द्वारा लिखित उपन्यास “द डार्केस्ट डेस्टिनी” एक साहसिक और गहन साहित्यिक प्रयास है, जो किन्नर और आदिवासी विमर्श को एक नए स्तर तक पहुंचाता है। यह उपन्यास न केवल सामाजिक चेतना को जागृत करने का कार्य करता है, बल्कि उन दबे-कुचले समुदायों की आवाज़ भी बनता है जिन्हें समाज ने लंबे समय से उपेक्षित रखा है। डॉ. राजकुमारी ने इस उपन्यास के माध्यम से न केवल किन्नर समुदाय के संघर्ष और अस्तित्व की कठिनाइयों को उजागर किया है, बल्कि आदिवासी समाज की भी जटिलताओं को सम्मिलित करते हुए एक सामंजस्यपूर्ण कथानक रचा है। यह प्रयास विशेष रूप से सराहनीय है क्योंकि यह साहित्य में एक नई विधा की नींव रखता है।
द डार्केस्ट डेस्टिनी की कथा एक ऐसे किरदार, अमृता, के इर्द-गिर्द घूमती है जिसका जीवन उसकी पहचान से जुड़ी त्रासदी से प्रारंभ होता है। जन्म के समय से ही अमृता को एक ऐसे सत्य का सामना करना पड़ता है जिसे समाज नकारता है। वह हिजड़ा है—न स्त्री, न पुरुष, बल्कि एक ऐसा व्यक्तित्व जिसका समाज में कोई ठोस स्थान नहीं। अपनी पहचान छुपाने के प्रयास में वह एक स्त्री का नाम लेती है, लेकिन उसकी असलियत उसे हमेशा पीछा करती है। अमृता के जीवन में खुशियों की झलक केवल क्षणिक होती है, और वे उसे एक बार फिर अंधेरे में धकेल देती हैं। यह कहानी केवल एक व्यक्ति की यात्रा नहीं है, बल्कि एक पूरी पहचान की संघर्षमय यात्रा है जो उसके साथ ही आरंभ और समाप्त होती है।
डॉ. राजकुमारी ने इस कथा को रहस्य और रोमांच के तत्वों के साथ बुना है, जो पाठक को आरंभ से अंत तक बांधे रखने में सक्षम हैं। अमृता की कहानी एक दिलचस्प लेकिन दर्दनाक सफर है जिसमें आशा और निराशा की बारीक परतें स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता इसका यथार्थवादी दृष्टिकोण है, जो सच्चाई को किसी भी प्रकार की महिमा मंडित नहीं करता। यह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि उन सभी की कहानी है जो समाज में अपनी पहचान के लिए संघर्षरत हैं।
राजकुमारी के इस उपन्यास में दो प्रमुख विमर्शों को एक साथ लाया गया है—किन्नर विमर्श और आदिवासी विमर्श। आमतौर पर साहित्य में इन दोनों विमर्शों को अलग-अलग ही देखा गया है, लेकिन द डार्केस्ट डेस्टिनी में ये दोनों एक साथ आते हैं। उपन्यास यह दिखाता है कि हाशिये पर खड़े ये दो समुदाय न केवल समाज की सीमाओं से जूझते हैं, बल्कि अपने आप में भी आत्म-सम्मान और पहचान की तलाश में हैं। अमृता के माध्यम से राजकुमारी यह सवाल उठाती हैं कि क्या किसी व्यक्ति की पहचान समाज द्वारा तय की जा सकती है, और अगर नहीं, तो किस हद तक व्यक्ति खुद को परिभाषित कर सकता है?
यह उपन्यास इस बात का भी गहरा अध्ययन करता है कि किस प्रकार समाज की सत्ता संरचनाएं इन समुदायों को हाशिये पर ढकेल देती हैं। हिजड़ा समुदाय का जीवन केवल उपेक्षा और तिरस्कार का ही नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान और सामूहिकता का भी है। वे समाज में अपनी जगह ढूंढ़ते हैं और इसी प्रक्रिया में अपनी खुद की पहचान बनाते हैं।
डॉ. राजकुमारी का यह उपन्यास न केवल साहित्यिक कल्पना है, बल्कि यह गहरे शोध पर आधारित है। उन्होंने हिजड़ा समाज की आंतरिक संरचना, उनकी परंपराओं, सामाजिक और आर्थिक संघर्षों, तथा उनकी भावनात्मक दुनिया का जो सजीव चित्रण किया है, वह शोध की प्रमाणिकता को सिद्ध करता है। उपन्यास की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि यह हिजड़ा समाज के बारे में बनी रूढ़ियों को तोड़ता है और पाठक को उनकी वास्तविकताओं से रूबरू कराता है। डॉ. राजकुमारी ने एक ऐसी भाषा का प्रयोग किया है जो न केवल साहित्यिक है, बल्कि संवेदनशील भी है।
डॉ. राजकुमारी की लेखनी में एक विशेष संवेदनशीलता है, जो कथानक को और भी प्रभावी बनाती है। उन्होंने अमृता के चरित्र को इतने सुंदर और संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत किया है कि पाठक उसके दर्द, उसकी आशाओं और उसकी निराशाओं को महसूस कर सकता है। भाषा का प्रवाह इतना सजीव है कि पाठक कहानी के साथ-साथ खुद भी यात्रा करने लगता है। लेखिका की भाषा पर अच्छी पकड़ है; वे सरल और सजीव शब्दों के माध्यम से गहरी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने में सफल हुई हैं।
कहानी में भाषा के साथ-साथ प्रतीकों और रूपकों का भी कुशलता से उपयोग किया गया है। अमृता का नाम ही एक प्रतीक है—अमृता, जिसका अर्थ है “अमरता”, एक ऐसी स्त्री जो अपनी पहचान के साथ जीने की कोशिश करती है, भले ही वह पहचान समाज की दृष्टि में अस्पष्ट और अस्वीकार्य हो। यह संघर्ष अंधकार से प्रकाश की ओर एक यात्रा का प्रतीक है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर कर देती है।
“द डार्केस्ट डेस्टिनी” की शैली रहस्य और रोमांच के तत्त्वों को शामिल करते हुए एक गंभीर और सामाजिक कथानक के रूप में सामने आती है। यह एक ऐसा उपन्यास है जो साहित्यिक विधाओं के परंपरागत ढांचों को तोड़ता है और एक नई शैली की ओर इशारा करता है। यह कथानक का प्रवाह है जो पाठक को कहानी के साथ जुड़े रहने पर मजबूर करता है। अमृता की जीवन यात्रा में अनेक मोड़ आते हैं, जिनमें उसके निर्णय, संघर्ष और आत्म-मूल्यांकन शामिल हैं। कहानी में रहस्य, अस्थिरता और रोमांच के तत्व इतने अच्छे से गूंथे गए हैं कि उपन्यास पढ़ते समय पाठक खुद को कथा का एक हिस्सा मानने लगता है।
डॉ. राजकुमारी ने कथा के माध्यम से समाज की तिरछी निगाहों और पारंपरिक सोच को प्रश्नवाचक बनाया है। उन्होंने न केवल एक हिजड़े के जीवन के भीतर की व्यथा को उकेरा है, बल्कि उन समस्त दबे-कुचले वर्गों की भी आवाज़ उठाई है जिनकी कहानियाँ समाज में प्रायः अनसुनी रह जाती हैं।
“द डार्केस्ट डेस्टिनी” केवल एक उपन्यास नहीं है। यह एक ऐसा दस्तावेज़ है जो समाज के हाशिये पर खड़े समुदायों की पहचान, उनके संघर्ष, और उनकी आशाओं की कहानी कहता है। डॉ. राजकुमारी का यह प्रयास न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी आवश्यक है। यह उपन्यास पाठक को सोचने पर मजबूर करता है कि समाज में हाशिये पर खड़े व्यक्तियों की असली पहचान क्या है, और क्या हम उनके संघर्ष को वास्तव में समझ पाते हैं?
उपन्यास का अंत एक ऐसी आशा का संचार करता है जो अंधेरे के बीच एक प्रकाश की किरण की तरह है। यह कहानी अंधकार के बीच से गुज़रते हुए उजाले की तलाश है, और यही इस उपन्यास की सबसे बड़ी ताकत है। डॉ. राजकुमारी की लेखनी में जो भावनात्मक गहराई है, वह पाठक को अंत तक बांधे रखती है और सोचने पर मजबूर करती है कि शायद ‘डार्केस्ट डेस्टिनी’ ही वह प्रकाश की ओर ले जाने वाला रास्ता है, जिसे हम सभी तलाशते हैं।
इस उपन्यास को पढ़ना एक भावनात्मक यात्रा है, जो न केवल एक अद्वितीय कथा का आनंद देती है, बल्कि पाठक को अपनी सोच पर भी पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती है। डॉ. राजकुमारी का यह उपन्यास निश्चित रूप से हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में उभरता है, और समाज में एक नए विमर्श की शुरुआत का संकेत देता है।
कार्यक्रम की झलकियाँ |
Contact Us |
|
बेहतरीन